कोई क्या जानें कहां है सीमा
कोई क्या जानें कहां है सीमा
उलझन आन पड़ी है
नैनों में चैन नही है
इधर झूम के गाए जिंदगी
उधर है मौत खड़ी।
चंचल चित को मोह ने घेरा है
पग पग पर है पाप का डेरा
डगमग डगमग डोले नैया
कोई क्या जानें कहां है सीमा।
इस दुनिया में भाग्य के आगे
चलें न किसी का उपाय
लाख करों चतुराई संतों
मिटे न करम का लेख।
झुठें नशें में क्यों तू चूर है
जबकि तेरा तन है माटी का खिलौना
जाना है भवसागर पार
कोई क्या जानें कहां है सीमा।
आया है अकेला तू
और जाना भी है अकेला
ये जीवन का सफर, एक अंधा सफर है
राहों में भटकने का भी डर है।
हम जीवन कैसे गुजारें
रूठ गई हैं कलयुग में बहारें
उलझन आन पड़ी है
कोई क्या जानें कहां है सीमा।
नूतन लाल साहू
Haaya meer
26-May-2023 09:34 AM
Wonderful
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